गणित शिक्षण part1

 

गणित की प्रकृति

गणित अंतरिक्ष, संख्या-परिमाण और माप का विज्ञान है। गणित में अमूर्त अवधारणाओं को ठोस रूप में रूपांतरित करना शामिल है। गणित बच्चों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता की आदत विकसित करने में मदद करता है। यह शुद्ध और विश्वसनीय ज्ञान देता है।

इस प्रकार, उपर्युक्त अंक के आधार पर, हम गणित की प्रकृति को समझ सकते हैं व निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि गणित की संरचना वास्तव में इसकी प्रकृति के आधार पर है तथा स्कूल की अन्य विषयों की तुलना में अधिक मजबूत है। यही कारण है कि स्कूली शिक्षा में इसका अध्ययन महत्वपूर्ण है।

गणित में गृह-कार्य

आज माध्यमिक स्कूलों का पाठ्यक्रम इतना विशाल है कि दी गई सामग्री को स्कूल समय में समाप्त करना संभव नहीं है। अतः अध्यापक यदि पाठ्यक्रम के साथ न्याय करना चाहता है तो उन्हें गृह-कार्य में हाथ बटाना होगा। इस प्रकार इस परिस्थिति में, यह महत्वपूर्ण ही नहीं अपितु छात्रों को गृहकार्य देना भी जरूरी है। बच्चों की क्षमता के अनुसार ही गृह-कार्य की प्रकृति व मात्रा दी जानी चाहिए। आंतरिक मूल्यांकन के भाग के रूप में होमवर्क का मूल्यांकन होना चाहिए तथा उचित भार दी जानी चाहिए।

गणित में मौखिक कार्य

आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि लिखने से अधिक प्रभावी सुनना और बोलना होता है। छात्र सुनकर बोलना अधिक पसन्द करते हैं। इस प्रकार, गणित में मौखिक कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पाठ लघु, आसान व उचित प्रश्नों द्वारा पेश किया जा सकता है। गणित में मौखिक कार्यों द्वारा बच्चों की कमजोरी को ढूंढना बहुत आसान है तथा उनकी गलतियों को इससे सुधारा जा सकता है। इस प्रकार, सभी नई प्रक्रियाओं व विधियों से छात्रों के दिमाग को आरंभ में ही परिचित कराया जाना चाहिए।

गणित में लिखित कार्य

सरल मौखिक विचार-विमर्श काफी नहीं है। इसके अलावा, दृश्य व श्रवण प्रकार के मनोविज्ञान के आधार पर यह स्पष्ट है कि सभी बच्चे केवल मौखिक कार्य से लाभांवित नहीं हो पाते हैं। इसलिए मौखिक कार्य के साथ-साथ लिखने का भी कार्य अवश्य देना चाहिए। इन दोनों तकनीकों को जोड़ना बेहतर है। इस प्रकार, मानसिक कार्य को लिखित कार्य से जोड़ना है तथा मौखिक एवं लिखित कार्य पठन-पाठन में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

गणित में सामूहिक कार्य

यह नालंदा विश्वविद्यालय में व्यापक रूप से इस्तेमाल होता था। यूनान के विद्वान अपने शिष्यों से विविध समस्याओं व मुद्दों पर चर्चा किया करते थे। इससे छात्रों को सामूहिक कार्य के कई अवसर मिल जाते थे। पहले की रणनीतियाँ सामान्यतः मौखिक व ड्रील समूहाें में आयोजित होती थी।

सामूहिक कार्य के आवश्यक घटक

निम्न  संपूर्ण समूह कार्य का गठन करता है -

1. अध्यापक

2. विषय-सूची

3. मूल्यांकन

4. समस्या

5. समूह

धन्यवाद

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