Environment notes

प्रिय पाठक,

जैसा कि आप सब जानते है CTET की परीक्षा 18 सितम्बर 2016 को होनी सुनिष्चित हुई है ,पेपर 1 में कुल 30 प्रश्न पर्यावरणके बारे में पूछे जाएंगे। जिनमे से लगभग 15 -18 प्रश्न पर्यावरणपर और बाकी 10-12 प्रश्न पर्यावरण शिक्षण पूछे जाएंगे । आपकी बेहतर तैयारी के लिए हम कुछ स्टडी नोट्स आपको उपलब्ध कराएंगे, उम्मीद है कि ये स्टडी नोट्स आप की तैयारी में बहुत मददगार होगी 

विटामिन

विटामिन एक अति आवश्यक रसायन है जो शरीर में होने वाले सामान्य चयापचय (Metabolism) की क्रियाओं की निरंतरता को बनाये रखता है. यह शरीर के सामान्य वृद्धि एवं विकास के लिए अति आवश्यक है. विटामिन शब्द 1912 में सर्वप्रथम फंक (Funk) नामक वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तावित किया गया। जीवन के लिए आवश्यक सुरक्षात्मक तत्व होने के कारण इसका नाम Vitamine (Vital + Amines) दिया गया।

सन 1915 में मैकालम नामक वैज्ञानिक ने इन विटामिनो में से कुछ को जल में घुलनशील पाया तथा कुछ को वसा में घुलनशील। इसी आधार पर विटामिन का वर्गीकरण किया गया।

जल में घुलनशील विटामिन –

विटामिन ‘बी’ (काम्प्लैक्स)विटामिन ‘सी’

वसा में घुलनशील विटामिन –

विटामिन ‘ए’विटामिन ‘डी’विटामिन ‘ई’विटामिन ‘के’

जल में घुलनशील विटामिन:-

विटामिन ‘बी’ (Vitamin B)

यह एक विटामिन न होकर कई विटामिनों का समूह है। इन सबको सम्मिलित रूप से ‘बी ‘काम्पलैक्स कहते हैं। इस समूह के विटामिन निम्न प्रकार है।

विटामिन बी 1‘ या थायमिन (Thiamine)

1926 में डोनथ व जैक्सन ने चावल की ऊपरी पर्त में से इस विटामिन को पृथक किया जिससे बेरी-बेरी रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया। गंधक की उपस्थिति के कारण इसका नाम थायमिन रखा।

विटामिन B 1 के कार्य:

यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायक होता है।पाचन संस्थान की माँसपेशियों की गति को सामान्य रखता है जिससे भूख सामान्य रहती है।तन्त्रिका तन्त्र के भली-भाँति कार्य करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।

प्राप्ति के स्रोत:-

अनाज व दालों के बीजांकुर, खमीर व सूखे मेवे, माँस, मछली, अण्डा, दूध व दूध से बने पदार्थों में भी यह विटामिन उचित मात्रा में पाया जाता है।

विटामिन ‘बी6’ (Vitamin 6 or Pyridoxin)

स्टीलर ने 1939 में इसे संश्लेषित किया इसके रूप को पायरीडॉक्सिन कहते हैं। यह शरीर में को- एन्जाइम की भाँति कार्य करने वाला विटामिन है।

पायरीडॉक्सिन के कार्य:-

यह नाड़ी संस्थान व लाल रक्त कणिकाओं को स्वस्थ बनाए रखता हैयह ट्रिप्टोफेन अमीनो एसिड को नायसिन में परिवर्तित करने में सहायक हैं।

प्राप्ति के स्रोत:-

सूखी खमीर, गेहूँ के बीजांकुर, माँस, यकृत, दालें, सोयाबीन, मूँगफली, अण्डा, दूध, दही, सलाद के पत्ते, पालक आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।

विटामिन ‘बी’12 (Vitamin B12 or Cyanocobalamine)

विटामिन बी 12 को कोबामाइड, एंटीपरनीशियस एनीमिया फेक्टर, एक्स्ट्रीन्सीक फेक्टर ऑफ केस्टल के नामों से भी संबोधित करते है। मनुष्य को इसकी पूर्ति के लिए भोजन पर निर्भर रहना पड़ता है किन्तु कुछ प्राणी आँतों में इसका निर्माण कर सकते हैं। ये पौधों में नहीं मिलता है।

कार्य:

यह प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है।अस्थि मज्जा में रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है।नाड़ी ऊतकों की चयापचयी क्रिया में सहायक है।

स्रोत : यकृत ,अण्डा ,माँस ,मछली ,दूध आदि है।

विटामिन सी (Vitamin ‘C’ or Ascorbic Acid)

स्कर्वी रोग को दूर करने के कारण इस विटामिन का नाम एस्कार्बिक एसिड पड़ा।

विटामिन सी के कार्य :

यह दाँत ,अस्थियों व रक्त वाहिनियों की दीवारों को स्वस्थ रखता है।घाव को भरने में सहायता करता है।यह लोहे के फैरिक को फैरस आयन में बदल देता है ,जिससे यह आँत में शीघ्रता से शोषित हो सके।बच्चों में विटामिन ‘सी ‘की कमी से छाती में दर्द रहता है व श्वाँस लेने में परेशानी होती रहती है।विभिन्न रोगों में निरोधक क्षमता बढ़ाता है।एड्रीनल ग्रन्थि में हार्मोन के संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है।यह विटामिन विभिन्न कोशिकाओं को जोड़ने वाला पदार्थ कालेजन के निर्माण में सहायक है, जो कि शरीर के समस्त अंगों व हड्डियों में पाया जाता है।इस विटामिन की हीनता से मनुष्य की हड्डियाँ खोखली हो जाती हैं।

‘प्राप्ति के स्त्रोत :

आँवला, अमरुद ताजे ,रसीले व खट्टे फलों जैसे -नीबू ,नारंगी व संतरा में यह प्रचुर मात्रा में मिलता है। अंकुरित अनाजों व दालों में भी यह उपस्थित रहता है।दूध व माँस में इसकी अल्प मात्रा रहती है।

वसा में घुलनशील विटामिन

विटामिन ’ (Vitamin A):

यह मुख्यतः वनस्पति के हरे रंग क्लोरोफिल से संबंधित है। पीले फल व सब्जियों में पाया जाने वाला कैरटिनोयाड्स वर्णक विटामिन ‘ए’ के लिए प्री-विटामिन है। इस विटामिन को रेटिनॉल भी कहते हैं। इसे वनस्पतियों में में पाये जाने वाले पदार्थ कैरोटीन (Carotene)से प्राप्त किया जाता हैं। इसे विटामिन A का प्रीकर्सर कहते हैं।

प्राप्ति के स्रोत:

यह उन साग-सब्जियों में पाया जाता है जो पीले व लाल रंग के हों ;जैसे टमाटर, गाजर, पपीता, शकरकंद, आम, आड़ू, मटर व हरी पत्तेदार सब्जियाँ (धनिया, शलजम, पोदीना, चुकंदर )आदि में।

मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में मिलता हैं। इसके अतिरिक्त यह अण्डा, दूध व मक्खन आदि में पर्याप्त मात्रा में मिलता है।

विटामिन ए के कार्य –

विटामिन ‘ए’ कमी रहने से रात्रि अन्धापन हो जाता है। जिसमें व्यक्ति धीमे प्रकाश में कुछ भी देखने में असमर्थ रहता है।यह एपिथीलियम ऊतकों की कार्यक्षमता व क्रियाशीलता बनाए रखता हैयह श्लेष्मा स्त्राव में सहायक कारकों के निर्माण में सहायता करता हैं,जिससे कि ऊतकों की स्थिरता बनी रहती हैं।यह ऊतक जीभ, नेत्र, श्वसन नली, मुख गुहा, प्रजनन व मूत्र संबन्धी नलियों आदि की आन्तरिक भित्ति का निर्माण करते हैं।विटामिन बाह्य त्वचा की कोशिकाओं को चिकना व कोमल बनाए रखती हैं।विटामिन ‘ए ‘की कमी से नेत्रों की बाहरी पर्त कार्निया मुलायम पड़ जाती हैं। इस रोग को कैराटोमलेशिया कहते हैं।

विटामिन के (Vitamin K):

विटामिन ‘के ‘ की खोज सर्वप्रथम डॉ. डेम ने 1933 में की थी। यह विटामिन रक्त स्राव को रोककर रक्त का थक्का जमाने में सहायक होता है। इसी विशेषता के कारण इस विटामिन का नाम रक्त का थक्का जमाने वाला विटामिन भी रखा गया।

प्राप्ति के स्रोत :

विभिन्न वनस्पतियों जैसे गोभी,सोयाबीन,हरे पत्ते वाली सब्जियों, आदि

विटामिन ई’ (Vitamin E):

विटामिन ‘ई ‘ मनुष्य व जन्तुओं में प्रजनन संस्थान की क्रियाशीलता हेतु आवश्यक होता हैं। प्रजनन संस्थान के कार्यों को नियन्त्रित करने वाला यह विटामिन बाँझपन को दूर करता है। इसी विशेषता के कारण इसे बाँझपन विरोधी के रूप में भी जाना जाता है।

प्राप्ति के स्रोत :

नारियल ,अलसी ,सरसों ,बिनौला  आदि के तेल, वनस्पति तेलों व वसाओं में इसकी अच्छी मात्रा उपस्थित रहती है। इसके अतिरिक्त यह विटामिन यकृत अण्डा ,अंकुरित ,अनाज ,माँस ,मक्खन में भी पाया जाता है। फल व सब्जियों में इसकी अल्प मात्रा रहती है।

विटामिन ‘ई ‘के कार्य:

यह विटामिन प्रजनन क्षमता को विकसित करता हैइसकी कमी से बाँझपन आता हैइसकी कमी से पुरूषों के शुक्राणु का बनना रूक जाता हैस्त्री के शरीर में भ्रूण गर्भ में ही मर जाते हैं।विटामिन ‘ई ‘लाल रक्त कणिकाओं के ऑक्सीकारक पदार्थों को टूटने -फूटने से रोकता है और उनकी जीवन अवधि बढ़ाता है।

विटामिन डी’ (Vitamin D):

सूर्य की अल्ट्रावॉयलट किरणों के प्रभाव से शरीर में संश्लेषित हो सकने की क्षमता के कारण इसे धूप का विटामिन भी कहा जाता हैं।

प्राप्ति के स्रोत :

यह विटामिन मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में पाया जाता हैं इसके अतिरिक्त अण्डा,दूध,पनीर में भी इसकी प्राप्ति होती है। विटामिन ‘डी ‘ की कुछ मात्रा हमारे शरीर में धूप द्वारा भी पहुँचती रहती हैं। जब प्रकाश की अल्ट्रावॉयलट किरणें त्वचा में उपस्थित कॉलेस्ट्रोल पर पड़ती हैं तो विटामिन ‘डी ‘का निर्माण होता है।

विटामिन डी ‘ के कार्य:

विटामिन ‘डी ‘शरीर में कैल्शियम व फॉस्फोरस के आंत्र में शोषण को नियन्त्रित करता है।विटामिन ‘डी ‘की कमी से कैल्शियम व फॉस्फोरस का अवशोषण कम हो जाता है जिससे ये तत्व शरीर में मल पदार्थों के साथ उतसर्जित हो जाते हैं।शरीर की उचित वृद्धि हेतु विटामिन ‘डी ‘अत्यन्त ही महत्वपूर्ण तत्व है।विटामिन ‘डी ‘मुख्य रूप से अस्थियों के निर्माण में मदद करता हैं।विटामिन ‘डी ‘ दाँतों के स्वस्थ विकास हेतु भी आवश्यक है। इसकी कमी से दाँतों के डेन्टीन व ऐनामेल का स्वास्थ्य प्रभावित होता है जिससे दाँत शीघ्र ही खराब हो जाते हैं।विटामिन ‘डी ‘पैराथायराइड ग्रन्थि की क्रियाशीलता को नियन्त्रित करता है।यह पेशी और तन्त्रिका तन्त्र को कार्यशील रखता है।चेचक और काली खाँसी से बचाव करता है।

धन्यवाद !

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