चालुक्य और पल्लव वंशजों पर इतिहास के नोट्स
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चालुक्य और पल्लव वंशजों पर इतिहास के नोट्स
चालुक्य वंश
चालुक्यों (कर्नाटक के शासकों ) के इतिहास, को तीन कालखंडो में बांटा जा सकता है:
प्रारंभिक पश्चिमी काल (6 से 8 शताब्दी ईसवी), बादामी के चालुक्य (वातापी);उत्तरवर्ती पश्चिमी काल (7 से 12 वीं शताब्दी ईसवीं) कल्याणी के चालुक्य;पूर्वी चालुक्य काल (7 से 12 वीं शताब्दी ईसवीं) वेंगी के चालुक्य।पुलकेशिन I (543 से 566 ईसवीं) बादामी का स्वतंत्र शासक था, इसकी राजधानी बीजापुर में वातापी थी।कीर्तिवर्मन I (566 से 596 ईसवीं) इसके बाद राजा बना। उसकी मृत्यु के पश्चात सिंहासन का उत्तराधिकारी राजकुमार पुलकेशिन II बना जो मात्र एक बच्चा था, और इसलिये राजा के भाई मंगलेश (597से 610) को सिंहासन का संरक्षक बनाया गया। उसने कई वर्षों तक राजकुमार को मारने के कई असफल प्रयास किये लेकिन अंत में वह राजकुमार और उसके दोस्तों द्वारा मारा गया।पुलकेशिन II (610 से 642 ईसवीं) पुलकेशिन I का पुत्र था और हर्षवर्धन के समकालीन व चालुक्य राजाओं में सबसे विख्यात था। उसके शासनकाल को कर्नाटक के महानतम कालों में याद किया जाता है। उसने हर्षवर्धन को नर्मदा नदीके तट पर पराजित किया था।कोशल और कलिंग विजय के पश्चात, पूर्वीचालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन II के भाई कुब्जा विष्णुवर्धन ने की।631 ईसवीं तक चालुक्य साम्राज्य समुद्र के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल गया था। यद्यपि 642 में जब पल्लव शासकनरसिंह वर्मन I ने चालुक्यों की राजधानी बादामी पर हमला करके उसपर कब्जा कर लिया तो पुलकेशिन II इस युद्ध में पराजित हुआ और संभवत: मारा भी गया।चालुक्यों ने विक्रमादित्य I (655 से 681ईसवीं) के नेतृत्व में पुन: अपनी शक्ति स्थापित की और समकालीन पांड्य, पल्लव, चोल और केरल राजाओं को चालुक्य साम्राज्य क्षेत्र में अपनी प्रभुसत्ता स्थापित करने के लिये हराया।विक्रमादित्य II (733 से 745 ईसवीं) ने पल्लव राज्य के बड़े भूभाग पर कब्जा करने के लिये पल्लव राजा नंदिवर्मन IIको पराजित किया।विक्रमादित्य II का पुत्र, कीर्तिवर्मन II (745) को राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग द्वारा पराजित किया गया जिसने राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की थी।
पल्लव वंश
दक्षिण भारत में पल्लव वंश का उदय उस समय हुआ जब सातवाहन वंश अपने पतन पर था।शिवस्कंदवर्मन को पल्लव वंश कासंस्थापक माना जाता है।इसके शासनकाल में, पल्लव शासकों नेकांची को अपनी राजधानी बनाया।इस समयावधि के दौरान उल्लेखनीय शासक हैं:
सिंहवर्मन I, शिवस्कंदवर्मन I, वीरक्रुच,शंदावर्मन II, कुमार विष्णु I, सिंहवर्मनII, विष्णुगोप।
नोट: ऐसा माना जाता है कि विष्णुगोप की समुद्रगुप्त के हाथों युद्ध में पराजय के बाद पल्लव कमजोर हो गये थे।सिंहवर्मन II का पुत्र सिंहविष्णु था जिसने अंतत: कालभ्रास के प्रभुत्च को 575 ईसवीं में कुचल कर पुन: अपने साम्राज्य को स्थापित किया।670 ईसवीं में,परमेश्वर वर्मन I शासक बना और चालुक्य राजा विक्रमादित्य I को आगे बढ़ने से रोका। हांलाकि चालुक्यों ने पल्लवों के कट्टर दुश्मन पांड्य राजा अरिकेसरी मारवर्मा से हाथ मिला लिया और परमेश्वर वर्मन I को पराजित किया।परमेश्वर वर्मन I की मृत्यु 695 ईसवीं में हो गयी जिसके बाद इसका स्थान शांतिप्रियराजा नरसिंह वर्मन II ने लिया। उसेकांची के प्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर केनिर्माण के लिये भी याद किया जाता है। वह 722 ईसवीं में अपने बड़े पुत्र की मृत्यु के शोक में मर गया।उसका सबसे छोटा बेटा परमेश्वर वर्मन II722 ईसवीं में राजगद्दी पर बैठा। इसकी मृत्यु 730 ईसवीं में हो गयी जिसके बाद सिंहासन पर बैठने के लिये कोई शासक शेष न बचा, जिससे पल्लव साम्राज्य अराजकता के भंवर में चला गया।नदिंवर्मन अपने संबंधियों व साम्राज्य के अधिकारियों से संघर्ष के बाद सिंहासन पर बैठा। नंदिवर्मन ने राष्ट्रकूट राजकुमारी रीतादेवी से विवाह किया और पल्लव साम्राज्य को पुर्नस्थापित किया।यह दंतिवर्मा (796 से 846 ईसवीं) द्वारा पराजित हुआ जिसने 54 वर्षो तक लम्बा शासन किया। दंतिवर्मा को राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग द्वारा पराजित किया गया और उसके बाद पांड्य द्वारा। उसे नंदिवर्मा III द्वारा 846 ईसवीं में पराजित किया गया।
Nice
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