प्रोजेक्ट टाइगर🐅👇🏻

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प्रोजेक्ट टाइगर🐅👇🏻

प्रोजेक्ट टाइगर 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के 

कार्यकाल के दौरान भारत सरकार द्वारा लॉन्च किया

गया बाघ संरक्षण कार्यक्रम है।

कार्यक्रम का उद्देश्य:
1973 में प्रोजेक्ट टाइगर को निम्नलिखित उद्देश्यों के 

साथ लॉन्च किया गया था:भारत में उपलब्ध बाघों की 

संख्या का वैज्ञानिक, आर्थिक और सांस्कृतिक और 

पारिस्थिक मूल्यों का संरक्षण सुनिश्चित करना।
ऐसे जैविक महत्त्व के क्षेत्र जैसे की राष्ट्रीय धरोहर को लोगो के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के सदा के लिए संरक्षित करना।
योजना का उद्देश्य:
लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण।
टाइगर रिज़र्व में और इसके आसपास रहने वाले जनजातीय लोगो के अधिकारों का ध्यान व तालमेल बनाये रखना।

टाइगर रिज़र्व :-भारत में राष्टीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा प्रशासित और प्रोजेक्ट टाइगर द्वारा शासित 50 टाइगर रिज़र्व है। भारत विश्व के 70 प्रतिशत बाघों का घर है 2006 में 1,411 बाघ थे जो 2011 में बढ़कर 1,706 और 2014 में 2,226 हो गए। विश्व वन्यजीव कोष और ग्लोबल टाइगर फोरम के अनुसार 2016 में जंगली बाघों की कुल संख्या बढ़कर 3890 हो गई देश में टाइगर रिज़र्व बाघों की रक्षा और इसके शिकार के लिए प्रोजेक्ट टाइगर द्वारा शासित अधिसूचित क्षेत्र है, इसे 1973 में लॉन्च किया गया था। शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के तहत 9 टाइगर रिज़र्व आते थे और यह संख्या बढ़कर 17 राज्यों में 42 हो गई है।

टाइगर रिज़र्व में दो क्षेत्र होते है:

कोर जोन:
वैज्ञानिक और उद्देश्यपरक मानदंड के आधार पर यह स्थापित एक महत्वपूर्ण बाघ निवास क्षेत्र है।
इन क्षेत्रो को बाघ संरक्षण के लिए अनुसूचित जनजातीय लोगो और जंगल क्षेत्र में रहने वाले लोगो के अधिकारों को प्रभावित किये बिना अनतिक्रांत बनाये रखने की आवश्यकता है।
ये राज्य सरकार द्वारा एक विशेषज्ञ समिति की सलाह से अधिसूचित किये जाते है।
बफर ज़ोन:
कोर टाइगर रिज़र्व क्षेत्र वह घेरा है जहाँ बाघों की प्रजातियां महत्वपूर्ण बाघ आवास क्षेत्र में उचित संख्या में फैले हुए है और इन आवास क्षेत्रो में कम आवासीय सुरक्षा की आवश्यकता है।
इसका उद्देश्य वन्यजीव और मानव गतिविधियों जैसे स्थानीय लोगो की आजीविका, विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना है।
इन क्षेत्रो की सीमाएं संबंधित ग्रामसभा और एक विशेषज्ञ समिति की सलाह द्वारा वैज्ञानिक और उद्देश्यपरक मानदंडो के आधार पर निर्धारित किये जाते है।
एनटीसीए की अनुशंसा और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की मंजूरी के बिना टाइगर रिज़र्व की सीमओं से संबंधित कोई विवाद उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
बाघों की संख्या का आकलन:
बाघों की संख्या के आकलन की प्रक्रिया को “बाघ गणना” कहते है। यह अभ्यास हमे अनुमानित बाघों की संख्या, घनत्व और बाघों के सूचकांक में परिवर्तन (किसी क्षेत्र में बाघों की उपस्थिति की माप) प्रदान करता है।
यह नियमित अंतराल पर बाघों की वर्तमान संख्या और उनकी संख्या के चलन(ट्रेंड) को जानने के लिए संचालित किया जाता है, और बाघों की घनत्व संख्या और उससे जुड़े शिकार पर जानकारी जुटाने में मदद करता है।
पहले, पगमार्क गणना तकनीक का चलन आम था। इस विधि में बाघ के पदचिह्नो को रिकॉर्ड करके इसके आधार पर व्यक्तिगत पहचान की जाती थी।
वर्तमान में बाघों की संख्या के आकलन के लिए कैमरा ट्रैपिंग और डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का प्रयोग किया जाता है। कैमरा ट्रैपिंग में बाघों के फोटो खींचे जाते है और व्यक्तिगत बाघों के शरीर पर धारियों के आधार पर विवेध किया जाता। हाल ही के डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक में बाघों को उनके द्वारा त्यागे हुए मल द्वारा विभेद किया जाता है।
विवाद और समस्याएं
प्रोजेक्ट टाइगर के प्रयासों को अवैध शिकार, सरिस्का और नाम्दाफा में अनियमितताएं और असफलता, जिसको भारतीय मीडिया में विशेष रूप से कवर किया गया।
भारत सरकार द्वारा 2006 में जंगल अधिकार अधिनियम पारित किया गया जिसमे जंगल क्षेत्रो में रहने वाले कुछ समुदायों के अधिकारों की पहचान की गई। बाघ संरक्षण में इस प्रकार के अधिकारों की पहचान से विवाद उत्पन्न हुआ।
कुछ ने तर्क दिया की यह समस्यापरक है और इससे टकराव बढेगा और अवैध शिकार के अवसर बढ़ेंगे, कुछ का यह भी मानना है की “मानव और बाघ का सह-अस्तित्व संभव नहीं है”।
अन्य का तर्क है की यह एक सिमित संभावना है जिसमे बाघों पर संकट के लिए में स्थानीय लोगो की बजाय मानव-बाघ के सहअस्तिव की वास्तविकता को और प्राधिकरण द्वारा शक्ति के दुरूपयोग की संभावना को नजरअंदाज किया गया। यह स्थिति भारत सरकार के टाइगर टास्क फ़ोर्स द्वारा समर्थित था और जंगल में रहने वाले लोगो के कुछ संगठनो द्वारा भी समर्थित था।

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