कोलेजियम व्यवस्था और मेमोरैंडम ऑफ प्रसीजर (MOP)
कोलेजियम व्यवस्था और मेमोरैंडम ऑफ प्रसीजर (MOP)
देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है। 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्यवस्था बनाई गई थी।
कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी सीनियर जजों की समिति जजों के नाम और नियुक्ति का फैसला करती है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
हाईकोर्ट के कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। हालांकि कॉलेजियम व्यवस्था का उल्लेखन न तो मूल संविधान में है और न ही संविधान के किसी संशोधन में इसका जिक्र किया गया है.
समस्याएं...
01.कोलेजियम की व्यवस्था पारदर्शिता की कमी से जूझती चली आ रही है
02.इस पर लगातार भाई-भतीजावाद, पक्षपात एवं अहम् के टकराव के आक्षेप लगाए जाते रहे हैं।
03.कई मौकों पर प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को उच्च और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति नहीं की जा सकी।
कॉलेजियम व्यवस्था को बदलने के लिए पिछले साल एनजेएसी कानून पारित किया था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एनजेएसी कानून को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया था।
मेमोरैंडम ऑफ प्रसीजर ..
दरअसल सरकार की ओर से बनाया जाने वाला ऐसा डॉक्युमेंट होता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया के तरीके बताए गए हैं।
प्रस्तावित एमओपी में प्रावधान हैं -
01.वरिष्ठता और योग्यता - उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का चुनाव करते हुए वरिष्ठता, योग्यता और अखंडता के मानदंड का पालन किया जाएगा। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों को उनकी "अंतर-वरिष्ठता" को देखते हुए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
02.लिखित रूप में कारण- सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के लिए एक वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश को नजरअंदाज किए जाने के मामले में, इसके लिए कारण लिखित रूप में दिया जायेगा।
03.तीन-न्यायाधीश कोटा - सरकार ने प्रस्तावित किया है कि बार से या प्रतिष्ठित न्यायविदों से साबित ट्रैक रिकॉर्ड के साथ तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है।
04.समिति और सचिवालय - संभावित उम्मीदवारों की उपयुक्तता के मूल्यांकन में कोलेजियम की सहायता के लिए एक समिति के रूप में एक संस्थागत तंत्र स्थापित करना।
05. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में एक सेक्रटेरिएट का गठन
सचिवालय .. न्यायाधीशों के डाटाबेस का रखरखाव, कॉलेजिएम की बैठकों का आयोजन करना,रिकॉर्ड रखनाऔर न्यायाधीशों की पोस्टिंग से संबंधित सिफारिशों और शिकायतों को देखना ।
लाभ..
* पारदर्शिता आयेगी
*भाई-भतीजावाद, पक्षपात मे कमी आयेगी।
* योग्यता को वरियता
*खाली पदो को भरा जा सकेगा।
सरकार व न्यायपालिका के बिच टकराव कम होगा।
Comments
Post a Comment