आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017
आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 2010 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए नियमों को अधिसूचित किया था। नये नियम उनका स्थान लेंगे।
पुराने नियमों में बड़ा बदलाव
·01.केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण को समाप्त कर दिया जाएगा। अधिसूचना जारी करने की शक्ति संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अधीन रहेगी।
02. 2010 के नियम में निर्धारित की गई 12 महीने की अवधि के सापेक्ष नए नियम में अधिसूचना के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है।
03. प्रतिबंधित गतिविधियों की संख्या को कम किया गया है।
04. पहले प्राधिकरण द़वारा लिए गए निर्णय को एक नागरिक दवारा एनजीटी में चुनौती दी जा सकती थी। नए नियमों के तहत नागरिक जांच का कोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
मुद्दे
01. नियमों के क्रियान्वयन में राज्यों का रिकॉर्ड प्रोत्साहित करने वाला नहीं है। यह देखा गया है कि राज्य स्थानीय दबाव को स्वीकार करने में अतिसंवदेनशील होते हैं। हाल ही में एनजीटी ने 2010 के नियमों के तहत झीलों को अधिसूचित भी न करने के लिए कुछ राज्यों को फटकार लगाई। इन तथ्यों के प्रकाश में पर्याप्त जाँच के बिना विकेन्द्रीकरण अनुत्पादक हो सकता है।
02. यह मसौदा केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण को समाप्त करता है जो आर्द्रभूमियों और उनके संरक्षण के स्वत: संज्ञान लेता था।
03. 2010 के नियमों में उल्लिखित आर्द्रभूमियों को पहचानने के पारिस्थितिक मानदंडो यथा जैव विविधता, रीफ, मैंगोव और आर्द्रभूमि परिसरों का नए मसौदा नियम में अभाव है।
04. नए मसौदा नियम में आर्द्रभूमियों के संरक्षण और हानिकारक गतिविधियों का स्पष्टीकरण जिसके लिए नियमन की आवश्यकता है, वैसे खंडो को हटा दिया गया है जो 2010 के नियमों में संदर्भित थे। ऐसा लगता है कि जैसे प्रतिबंधित गतिविधियां अचानक काफी कम हो गई हों, जिससे संरक्षण उपायों को कमजोर कर दिया गया है। ’विवेकपूर्ण उपयोग’ जैसे अस्पष्ट पद के तहत गतिविधियों की अनुमति दी गई है।
05. स्थानीय लोगों और संस्थाओं को कोई भूमिका नहीं दी गई हैं।
सुझाव
01. आर्द्रभूमियों की पहचान के लिए वैज्ञानिक मापदंड की जरूरत है-एक स्वतंत्र प्राधिकरण इसके संदर्भ में ज्यादा मदद कर सकता हैं।
02. आर्द्रभूमियों का एक डाटा (आंकड़ा) बैंक (अधिकोष) बनाने के लिए इस विधि का उपयोग करें; जबकि केवल रामसर स्थलों के समुचित आंकड़े मौजूद हैं। आर्द्रभूमियों के समूचित डाटा बैंक के अभाव में आर्द्रभूमियों का विस्तार पता नहीं चला और अतिक्रमण आसान हो जाता है।
03. उचित नियंत्रण और संतुलन-केंद्र सरकार और नागरिकों दोनों की ओर से आवश्यक हैं।
04. नियम जन-केंद्रित होना चाहिए; आर्द्रभूमियों की पहचान करने में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग बोर्ड (कस्बा और देश योजना परिषद) की भागीदारी होनी चाहिए।
05. प्रबंधन में मछुआरा समुदाय, कृषक और चरवाहा समुदायों जैसे स्थानीय लोगों की अधिक भूमिका होनी चाहिए-क्योंकि आर्द्रभूमियों के संरक्षण का इन्हें अनुभव होता है और इसमें इनका हित भी समाहित होता है।
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