मरता हुआ आदमी ———————

मरता हुआ आदमी
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दुर्घटना पश्चात
अस्पताल के ट्रोमा सेंटर में
तमाम चिकित्सकीय कोशिशों के बाद भी
मर रहे आदमी को
देखकर सोचता हूँ कि
प्रतिपल चिरनिद्रा की तरफ़ बढ़ता हुआ 
ये आदमी
अपनी बची-खुची साँसों से
कहाँ सोच पा रहा होगा
मज़हबी द्वंद्व,
व्यवसायिक चातुर्य,
सिरमोरी का विवाद ,
दंभ दुदुंभियां !

क्योंकर याद आ रहा होगा
किसी दुश्मन का चेहरा,
घूमे हुए स्थान,
मिले हुए उपलब्धि पत्र,
घर की महँगी सजावटी भौतिक चीज़ें !

वह मरता हुआ आदमी
असफल कोशिशें कर रहा है
डॉक्टर, परिचारकों को बताने की
मगर शब्द स्पष्ट नहीं हैं
चेहरे पर अनाभिव्यक्ति का दर्द है
हाथ उठाता है बस रह-रहकर I

बहुत कम बचे क्षणों में
केवल अपनों को
एक बार छूने, गले लगाने
लाड़-प्यार-स्नेह-सम्मान दिखाने की अतृप्त इच्छा बचती है
तनाव, अवरोध, विरोध
अहं, छोटा-बड़ा हट जाता है !!

मर रहा आदमी
दर्द, टीस, कसक, मलाल के बीच भी
ज़िंदगी के पाठ का
एक निर्दोष सफ़ा-सा है
जिसे पढ़कर
मिट सकते हैं कई दुनियावी वहम !

जब जीवन का अंत दिख रहा हो तो
प्राथमिकताएं बदल जाती हैं
क्योंकि
जब आदमी मरता है
तो बहुत कुछ मर जाता है !!

Jitendra Kumar Soni

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