राजस्थान के पर्यटन स्थल
RAJASTHAN MAPE
राजस्थान की क्षेत्रफल वर्गीकरण
क्षेत्रफल की द्रष्टि से हमारे देश का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान हैं । राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्गकि.मी. है। जो कि देश का 10.41प्रतिशत है और क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थानहै। यहाँ की राजधानी प्रसिद्ध पर्यटक नगरी जयपुर हैं । जयपुर को गुलाबी नगरी (PINK CITY) के नाम से भी जाना जाता हैं । राजस्थान के पश्चिम में थार मरुस्थल हैं । राजस्थान में कुल 33 जिले आते हैं ।
(१.) जयपुर (JAIPUR) (२.) अजमेर (३.) अलवर (४.) उदयपुर (५.) करौली (६.) कोटा (७.) गंगानगर (८.) चित्तौडगढ़ (९.) चुरू (१०.) जालौर (११.) जैसलमेर (१२.) जोधपुर (१३.) झालावाड़ (१४.) झुंझुनू (१५.) टोंक (१६.) दौसा (१७.) धौलपुर (१८.) डूंगरपुर (१९.) नागौर (२०.) पाली (२१.) प्रतापगढ़ (२२.) बाराँ (२३.) बांसवाड़ा (२४.) बाड़मेर (२५.) बूंदी (२६.) भीलवाड़ा (२७.) भरतपुर (२८.) राजसमन्द (२९.) सवाई माधोपुर (३०.) सीकर (३१) सिरोही (३२.) हनुमानगढ़ (३३.) बीकानेर
राजस्थान के दर्शनीय स्थल
राजस्थान के दर्शनीयस्थल
राजेरजवाड़ों और राजसी वैभव के तमाम किस्से समेटे सांस्कृतिक और आधुनिकता का संगम बन चुका राजस्थान अपने अद्भुत वास्तुशिल्प, मधुर लोकसंगीत और रंगबिरंगे पहनावे के लिए मशहूर है | यही वजह है कि विदेशी पर्यटक यहां बरबस ही खिंचे चले आते हैं.राजाओं की धरती राजस्थान देशी और विदेशी घुमक्कड़ों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल माना जाता है| यह राज्य अपनी संस्कृति, रंगबिरंगे पहनावे और खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों के लिए जाना जाता है | यहां की पुरानी हवेलियां जो कभी राजेमहाराजों और राजकुमारियों का निवास हुआ करती थीं, उन्हें पर्यटकों के लिए लग्जरी होटलों में तबदील कर दिया गया है | इन में रह कर पर्यटक कुछ समय के लिए खुद को इस राजसी राज्य का राजा महसूस करने लगते हैं|
जैसलमेर, राजस्थान
राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में थार के रेगिस्तान के हृदयस्थल पर स्थित जैसलमेर देश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है|अनुपम वास्तुशिल्प, मधुर लोकसंगीत, विपुल सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को अपने में समाए जैसलमेर पर्यटकों के स्वागत के लिए सदैव तत्पर रहता है| यह ?ालसाने वाली गरमी और जमा देने वाली ठंडी रेगिस्तानी जमीन के लिए जाना जाता है|
जैसलमेर के दर्शनीयस्थल
डेजर्ट कल्चर सैंटर व म्यूजियम: डैजर्ट कल्चर सैंटर व म्यूजियम राजस्थान की संपन्न संस्कृति को दर्शाता है| इस संग्रहालय में कई तरह के पारंपरिक यंत्र, प्राचीन व मध्ययुग के सिक्के, खूबसूरत पारंपरिक टैक्सटाइल व बेशकीमती चीजों को संगृहीत किया गया है|
सलीम सिंह की हवेली: बेहतरीन शिल्पकला का नमूना दर्शाती यह हवेली जैसलमेर किले के निकट पहाडि़यों के पास स्थित है. इस की छत को मोर के डिजाइन में तैयार किया गया है जबकि हवेली के मुख्यद्वार पर एक विशालकाय हाथी किसी द्वारपाल की भांति खड़ा है| हवेली के भीतर 38 बालकनी हैं| हवेली को सामने से देखने पर यह एक जहाज की तरह प्रतीत होती है, इसी कारण कई लोग इसे जहाजमहल भी कहते हैं|
पटवा हवेली : पटवा हवेली जैसलमेर में स्थित हवेलियों में अपना अलग ही स्थान रखती है| पत्थर से बनी इस हवेली की किनारियों को सुनहरे रंग से रंगा गया है| इस हवेली को पटवा भाइयों द्वारा 1800 व 1860 के मध्य बनवाया गया था, जो गहनों के व्यापारी थे|वर्तमान में इसे पटवा स्टाइल के फर्नीचर व साजसजावट से सजाया गया है जो पर्यटकों को पटवाओं के रहनसहन की ?ालक दिखाता है|
कैमल सफारी : जैसलमेर का यह वह स्थान है जहां पर देशीविदेशी पर्यटकों को राजस्थान की शाही सवारी यानी ऊंट पर सवारी करने का रोमांचकारी अनुभव होता है| ऊंट पर्यटकों को अपनी पीठ पर बिठा कर पास ही स्थित छोटेछोटे गांवों तक सैर के लिए ले जाता है, जहां पर्यटकों को राजस्थानी जीवनशैली के दर्शन होते हैं| वहीं ऊंट पर बैठ कर आप हवेलियों, मंदिरों व अन्य स्थानों तक भी जा सकते हैं, रास्ते में आप को लोकनृत्य व लोकसंगीत की झलकियां देखने को मिलेंगी| :
जैसलमेर कैसे जाएं
जैसलमेर रेलमार्ग : जैसलमेर रेलमार्ग से देश के अधिकतर शहरों से जुड़ा हुआ है|
जैसलमेर के सड़क मार्ग : सड़क मार्ग द्वारा जैसलमेर जाने के लिए निजी औपरेटर्स के वाहन और राजस्थान सरकार की डीलक्स बसें हर समय उपलब्ध रहती हैं|
जैसलमेर के हवाई मार्ग : जोधपुर, जयपुर, मुंबई और दिल्ली से जैसलमेर के लिए इंडियन एअरलाइंस की सीधी फ्लाइट मिलती हैं|
जैसलमेर कब जाएं : अक्तूबर से फरवरी तक आप यहां ठंड और बारिश के मिलेजुले मौसम का आनंद उठा सकते हैं|
उदयपुर, राजस्थान
उदयपुर, राजस्थान
अरावली पहाड़ी के निकट स्थित राजस्थान के सब से खूबसूरत शहर उदयपुर को झीलों का शहर भी कहा जाता है| यह अपनी प्रकृति और मानवीय रचनाओं से समृद्घ अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है| यहां की हवेलियों, महलों, झीलों और हरियाली को देख कर सैलानी उमंग से भर जाते हैं. मनमोहक और हरेभरे बगीचे, झीलों , नहरें, दूध की तरह सफेद संगमरमर के महल इस शहर को रोमांटिक बनाते हैं|
उदयपुर के दर्शनीयस्थल
सिटी पैलेस : इस महल की स्थापना 16वीं सदी की शुरुआत में की गई थी. इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान रहा| शीशे और कांच के कार्य से निर्मित यह भव्य महल यूरोपीय व चीनी वास्तुकला का उम्दा नमूना पेश करता है|किले के भीतर गलियारों, मंडपों, प्रांगणों व बगीचों के समूह हैं| इस में कई बालकनियां और टावर भी हैं| पैलेस के मुख्य हिस्से को संग्रहालय का रूप दिया गया है जिस में पुरानी वस्तुओं को संरक्षित रखा गया है|
पिछौला झील: इस झील के बीच में जलमहल, जग मंदिर, जगनिवास का निर्माण हुआ है| इस खूबसूरत झील के सफेद पानी में पर्यटक नौका विहार का आनंद लेते हैं|
सहेलियों की बाड़ी: यह उदयपुर की रानियों व राजकुमारियों के आराम करने के लिए बनवाई गई थीं? इस विश्राम स्थल में कई सुंदर फौआरे लगे हुए हैं. यह चारों ओर से हरियाली से घिरी है|
फतेहसागर : यह झील एक नहर द्वारा पिछौला झील से जुड़ी हुई है. यह 3 तरफ से पहाडि़यों से घिरी है इस के बीच में नेहरू पार्क है| इस में एक खूबसूरत रेस्तरां बनाया गया है जहां पहुंचने के लिए झील के बीच में एक पुल का निर्माण किया गया है. इस रेस्तरां में आराम से बैठ कर पर्यटक विभिन्न व्यंजनों का स्वाद लेते हैं|
भारतीय लोककला मंडल : जिन लोगों को राजस्थान की पारंपरिक व ऐतिहासिक वस्तुएं देखने में रुचि है उन के लिए यह स्थान सब से उपयुक्त है| यहां राजस्थानी पहनावे, गहने, वाद्ययंत्र, कठपुतलियां, मुखौटे और उस समय की सुंदर चित्रकारी का दुर्लभ संग्रह है| विशेष रूप से बच्चे यहां हर रोज दिखाए जाने वाले कठपुतली नृत्य का जम कर आनंद लेते हैं|
उदयपुर कैसे जाएं
उदयपुर कैसे जाएं
उदयपुर रेल मार्ग : उदयपुर, दिल्ली, जयपुर, अजमेर व अहमदाबाद से रेलमार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है|
उदयपुर सड़क मार्ग : उदयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर स्थित है|दिल्ली, आगरा, जयपुर, अजमेर, माउंट आबू, अहमदाबाद से उदयपुर के लिए सीधी बस सेवाएं हैं|
उदयपुर हवाई मार्ग : सब से नजदीकी हवाई अड्डा महाराणा प्रताप है. यह डबौक में है| जयपुर, जोधपुर, औरंगाबाद, दिल्ली तथा मुंबई से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं|
उदयपुर कब जाएं : यदि आप उदयपुर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो यहां जाने का सब से अच्छा मौसम वर्षा ऋतु के बाद है, क्योंकि बारिश के बाद यहां की सुंदरता असाधारण हो जाती है| वैसे यहां घूमने का उपयुक्त समय सितंबर से अप्रैल तक है|
माउंट आबू, राजस्थान
माउंट आबू ‘डेजर्ट स्टेट कहे जाने वाले राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है जो गुजरात वालों के लिए वहां की हिल स्टेशन की कमी को भी पूरा करता है| दक्षिणी राजस्थान के सिरोही जिले में गुजरात की सीमा से सटा यह हिल स्टेशन 4 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है| इस की सुंदरता कश्मीर से कम नहीं आंकी जाती|
माउंट आबू के दर्शनीयस्थल
नक्की झील: राजस्थान के माउंट आबू में 3,937 फुट की ऊंचाई पर स्थित नक्की झील लगभग ढाई किलोमीटर के दायरे में फैली हुई कृत्रिम झील है. ?ाल के आसपास हरीभरी वादियां, खजूर के वृक्षों की कतारें, पहाडि़यों से घिरी झील और झील के बीच आईलैंड किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है| झील में बोटिंग करने का मजा भी लिया जा सकता है, जिस में पैडल बोट, शिकारा व फैमिली बोट का मजा उठा सकते हैं|
सनसैट पौइंट : शाम के समय सनसैट पौइंट से सूरज के ढलने का नजारा देखने के लिए सैकड़ों सैलानी यहां उमड़ पड़ते हैं. पर्यटक इस नजारे को अपने कैमरों में कैद कर के ले जाते हैं| इस पौइंट तक पैदल चल कर तो जाया ही जा सकता है| यदि आप पैदल नहीं चलना चाहते तो यहां पहुंचने के लिए ऊंट अथवा घोड़े की सवारी कर के पहुंच सकते हैं|
हनीमून पौइंट : सनसैट पौइंट से 2 किलोमीटर दूर नवविवाहित जोड़ों के लिए हनीमून पौइंट है|यह ‘आंद्रा पौइंट के नाम से भी जाना जाता है| शाम के समय यहां नवविवाहित जोड़े होटलों के कमरों से निकल कर प्रकृति का आनंद उठाते हैं|
टौड रौक : यह मेढक के आकार की बनी एक चट्टान है जो नक्की ? झील से कुछ ही दूरी पर स्थित है|यह चट्टान सैलानियों, विशेष रूप से बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है|चट्टान इस तरह अपने स्थान पर टिकी है मानो यह अभी झील में कूद पड़ेगी, इसलिए यह पर्यटकों के लिए कुतूहल का केंद्र है|
म्यूजियम और आर्ट गैलरी: राजभवन परिसर में 1962 में गवर्नमैंट म्यूजियम स्थापित किया गया है ताकि इस क्षेत्र की पुरातात्विक संपदा को संरक्षित रखा जा सके|
गुरुशिखर : गुरुशिखर समुद्रतल से करीब 1,722 मीटर ऊंचा है| यह अरावली पर्वत की सब से ऊंची चोटी है| इस शिखर से नीचे और आसपास का नजारा देखना सैलानियों को अलग ही अनुभव देता है|
वन्यजीव अभयारण्य : राज्य सरकार द्वारा 228 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को 1960 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था| पशुपक्षियों को नजदीक से देखने की चाह रखने वाले लोगों के लिए यह जगह उत्तम है| यहां वानस्पतिक विविधता, वन्यजीव व स्थानीय प्रवासी पक्षी आदि देखे जा सकते हैं| पक्षियों की लगभग 250 और पौधों की 110 से अधिक प्रजातियां देखी जा सकती हैं| साथ ही तेंदुए, वाइल्ड बोर, सांभर, चिंकारा और लंगूर आप को उछलकूद करते दिख जाएंगे|
माउंट आबू कैसे जाएं
माउंट आबू हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है, जो यहां से 185 किलोमीटर दूर है|
माउंट आबू रेल मार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड, 28 किलोमीटर की दूरी पर है जो अहमदाबाद, दिल्ली, जयपुर और जोधपुर से जुड़ा हुआ है|
माउंट आबू सड़क मार्ग : माउंट आबू देश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है|
कब जाएं : यहां फरवरी से जून व सितंबर से दिसंबर तक घूमना सब से उपयुक्त रहता है|
जयपुर, राजस्थान
पिंक सिटी के नाम से मशहूर जयपुर राजस्थान की राजधानी है| जयपुर अपनी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में जाना जाता है|यहां कला, संस्कृति और सभ्यता का अनोखा संगम देखने को मिलता है|
जयपुर दर्शनीय स्थल
हवामहल : यह शिल्पकला का उम्दा नमूना माना जाता है| यह जयपुर का सब से अनोखा स्मारक है| इस में 152 खिड़कियां व जालीदार छज्जे हैं|अपनी कलात्मकता के लिए विख्यात हवामहल का निर्माण 18वीं सदी में राजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया था|शहर के केंद्र में बना यह पांचमंजिला महल लाल और गुलाबी रंग, सैंड स्टोन से मिलजुल कर बना है| यहां से शहर का आकर्षक नजारा देखा जा सकता है|
जयपुर सिटी पैलेस: शहर में स्थित सिटी पैलेस मुगल और राजस्थानी स्थापत्य कला का एक बेहतरीन नमूना है| पुराने शहर के दिल में स्थित सिटी पैलेस वृहद क्षेत्र में फैला हुआ है| सिटी पैलेस के एक हिस्से में अब भी जयपुर का शाही परिवार रहता है| कई इमारतें, सुंदर बगीचे और गलियारे इस महल का हिस्सा हैं|
जलमहल: यह सवाई प्रताप सिंह द्वारा 1799 में बनवाया गया था. यह महल मान सागर झील के बीचों बीच स्थित है|
जयपुर कैसे जाएं
जयपुर वायु मार्ग : जयपुर के दक्षिण में स्थित सांगनेर एअरपोर्ट नजदीकी एअरपोर्ट है|
जयपुर रेल मार्ग : जयपुर रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से विभिन्न रेलगाडि़यों के माध्यम से जुड़ा हुआ है|
जयपुर सड़क मार्ग : दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से जयपुर पहुंचा जा सकता है जो 256 किलोमीटर की दूरी पर है| राजस्थान परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से जयपुर जाती हैं| दिल्ली से भी जयपुर के लिए सीधी बस सेवा है|
जयपुर कब जाएं : जयपुर में मार्च से जून तक काफी गरमी रहती है| यहां घूमने का सब से उपयुक्त समय सितंबर से फरवरी है|
राजस्थान राज्य केबारे में सम्पूर्ण एंवसटीक जानकारी
में आज 30 मार्च हैं यानि राजस्थान दिवस हैं इस मौके पर प्रस्तुत करता हूँ राजस्थान की पूरी जन्मकुंडली दोस्तों आज आपको ले चलता हूँ राजस्थान की सुनहरी दुनिया में जी हां राजस्थान एक ऐसा राज्य हैं जहां पर आपको भारत की प्राचीनतम संस्कृति आज भी नजर आएगी राजस्थान को संत सूरमा राजा भक्त अवतार ज्ञानी ध्यानी की धरती कहा जाता हैं भक्तो की धरती कहे तो यहाँ पर मीरा बाई की धरती हैं अवतारों की धरती कहे तो बाबा रामदेव की धरती हैं , वीरो की धरती कहे तो महाराणा प्रताप की धरती हैं , यानि तो राजस्थान की धरती पर ऐसे अनगिणत वीर वीरांगना पैदा हुए जिनका नाम आज भी स्वर्ण अक्षरों में लिखित हैं | तो चलिए जानते हैं राजस्थान का भूगोल ,इतिहास ,भाषा संस्कृति ,पर्यटन ,और भी बहुत कुछराजपुताना शुरुआत करता हूँ राजपुताना शब्द से क्योंकि राजस्थान का प्राचीन नाम राजपुताना ही था राजस्थान भारत का एक महत्वपूर्ण प्रांत है। यह 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुईं। भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत के विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है: ‘राजाओं का स्थान’ क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। भारत के संवैधानिक-इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। देश (भारत) की आजादी के पूर्व राजस्थान 19 देशी रियासतों में बंटा था, जिसमें अजमेर केन्द्रशासित प्रदेश था।
इन रियासतों में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा में गुहिल, जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़ में राठौड़ कोटा और बूंदी में हाड़ा चौहान, सिरोही में देवड़ा चौहान, जयपुर और अलवर में कछवाहा, जैसलमेर और करौली में यदुवंशी एवं झालावाड़ में झाला राजपूत राज्य करते थे। टोंक में मुसलमानों एवं भरतपुर तथा धौलपुर में जाटों का राज्य था। इनके अलावा कुशलगढ़ और लावा की चीफशिप थी। कुशलगढ़ का क्षेत्रफल ३४० वर्ग मील था। वहां के शासक राठौड़ थे। लावा का क्षेत्रफल केवल 20 वर्ग मील था। वहां के शासक नारुका थे।
राजस्थान का भूगोल
राजस्थान का भूगोल
देश के पश्चिमोत्तर की ओर स्थित, राजस्थान भारत गणराज्य में क्षेत्र से सबसे बड़ा राज्य है। ये राज्य भारत के 10.4% भाग को अपने में समेटे हुए है जिसमें 342,269 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है। गुलाबी नगरी जयपुर यहाँ की राजधानी है जबकि अरावली रेंज में स्थित माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग काफी शुष्क और रेतीले है जिसमें से अधिकांश भाग को थार रेगिस्तान ने कवर कर रखा है। राजस्थान की आकृति लगभग पतङ्गाकार है। राज्य 230 3’ से 300 12’ अक्षांश और 690 30’ से 780 17’ देशान्तर के बीच स्थित है। इसके उत्तर में पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा, दक्षिण में मध्यप्रदेश और गुजरात, पूर्व में उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश एवं पश्चिम में पाकिस्तान हैं। सिरोही से अलवर की ओर जाती हुई 48 कि॰मी॰ लम्बी अरावली पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक दृष्टि से राज्य को दो भागों में विभाजित करती है।
राजस्थान की सीमा उत्तर में श्रीगंगानगर जिले के कोणा गाँव से दक्षिण में बांसवाड़ा जिले की कुशलगढ़ तहसील का बोरकुंड गांव और पूर्व में धौलपुर जिले की राजखेड़ा तहसील का शीलोंन गाँव से पच्छिम में जैसलमेर जिले की सम तहसील का कटरा गाँव आता हैं
राजस्थान का पूर्वी सम्भाग शुरु से ही उपजाऊ रहा है। इस भाग में वर्षा का औसत 50 से.मी. से 90 से.मी. तक है। राजस्थान के निर्माण के पश्चात् चम्बल और माही नदी पर बड़े-बड़े बांध और विद्युत गृह बने हैं, जिनसे राजस्थान को सिंचाई और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध हुई है। अन्य नदियों पर भी मध्यम श्रेणी के बांध बने हैं, जिनसे हजारों हैक्टर सिंचाई होती है। इस भाग में ताम्बा, जस्ता, अभ्रक, पन्ना, घीया पत्थर और अन्य खनिज पदार्थों के विशाल भण्डार पाये जाते हैं। राज्य का पश्चिमी भाग देश के सबसे बड़े रेगिस्तान ” थार” या ‘थारपाकर’ का भाग है। इस भाग में वर्षा का औसत 12 से.मी. से 30 से.मी. तक है।
इस भाग में लूनी, बांड़ी आदि नदियां हैं, जो वर्षा के कुछ दिनों को छोड़कर प्राय: सूखी रहती हैं। देश की स्वतंत्रता से पूर्व बीकानेर राज्य गंगानहर द्वारा पंजाब की नदियों से पानी प्राप्त करता था। स्वतंत्रता के बाद राजस्थान इण्डस बेसिन से रावी और व्यास नदियों से 52.6 प्रतिशत पानी का भागीदार बन गया। उक्त नदियों का पानी राजस्थान में लाने के लिए सन् 1958 में ‘राजस्थान नहर’ (अब इंदिरा गांधी नहर) की विशाल परियोजना शुरु की गई। जोधपुर, बीकानेर, चूरू एवं बाड़मेर जिलों के नगर और कई गांवों को नहर से विभिन्न “लिफ्ट परियोजनाओं” से पहुंचाये गये पीने का पानी उपलब्ध होगा। इस प्रकार राजस्थान के रेगिस्तान का एक बड़ा भाग अन्तत: शस्य श्यामला भूमि में बदल जायेगा। सूरतगढ़ जैसे कई इलाको में यह नजारा देखा जा सकता है
राजस्थान काइतिहास
राजस्थान का इतिहास बहुत ही प्रसिद्ध इतिहास हैं | इसलिए राजस्थान के शौर्य का वर्णन करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहाससार कर्नल टॉड ने अपने ग्रंथ “”अनाल्स एण्ड अन्टीक्कीटीज आफ राजस्थान” में कहा है, “”राजस्थान में ऐसा कोई राज्य नहीं जिसकी अपनी थर्मोपली न हो और ऐसा कोई नगर नहीं, जिसने अपना लियोजन डास पैदा नहीं किया हौ।”
मेवाड़ का शौर्यपूर्णइतिहास
15वीं शताब्दी के मध्य में मेवाड़ का राणा कुम्भा उत्तरी भारत में एक प्रचण्ड शक्ति के रुप में उभरा। उसने गुजरात, मालवा, नागौर के सुल्तान को अलग-अलग और संयुक्त रुप से हराया। सन् 1508 में राणा सांगा ने मेवाड़ की बागडोर संभाली। सांगा बड़ा महत्वाकांक्षी था। वह दिल्ली में अपनी पताका फहराना चाहता था। समूचे राजस्थान पर अपना वर्च स्थापित करने के बाद उसने दिल्ली, गुजरात और मालवा के सुल्तानों को संयुक्त रुप से हराया। सन् 1526 में फरगाना के शासक उमर शेख मिर्जा के पुत्र बाबर ने पानीपत के मैदान में सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली पर अधिकर कर लिया। सांगा को विश्वास था कि बाबर भी अपने पूर्वज तैमूरलंग की भांति लूट-खसोट कर अपने वतन लौट जाएगा, पर सांगा का अनुमार गलत साबित हुआ। यही नहीं, बाबर सांगा से मुकाबला करने के लिए आगरा से रवाना हुआ। सांगा ने भी समूचे राजस्थान की सेना के साथ आगरा की ओर कूच किया। बाबर और सांगा की पहली भिडन्त बयाना के निकट हुई। बाबर की सेना भाग खड़ी हुई। बाबर ने सांगा से सुलह करनी चाही, पर सांगा आगे बढ़ताही गया। तारीख 17 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में दोनों पक्षों में घमासान युद्ध हुआ। मुगल सेना के एक बार तो छक्के छूट गए। किंतु इसी बीच दुर्भाग्य से सांगा के सिर पर एक तीर आकर लगा जिससे वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। उसे युद्ध क्षेत्र से हटा कर बसवा ले जाया गया। इस दुर्घटना के साथ ही लड़ाई का पासा पलट गया, बाबर विजयी हुआ। वह भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डालने में सफल हुआ, स्पष्ट है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना में पानीपत का नहीं वरन् खानवा का युद्ध निर्णायक था।
खानवा के युद्ध ने मेवाड़ की कमर तोड़ दी। यही नहीं वह वर्षो तक ग्रह कलह का शिकार बना रहा। अब राजस्थान का नेतृत्व मेवाड़ शिशोदियों के हाथ से निकल कर मारवाड़ के राठौड़ मालदेव के हाथ में चला गया। मालदेव सन् 1553 में मारवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने मारवाड़ राज्य का भारी विस्तार किया। इस समय शेरशाह सूरी ने बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। शेरशाह ने राजस्थान में मालदेव की बढ़ती हुई शक्ति देखकर मारवाड़ के निकट सुमेल गांव में शेरशाह की सेना के ऐसे दाँत खट्टे किये कि एक बार तो शेरशाह का हौसला पस्त हो गया। परन्तु अन्त में शेरशाह छल-कपट से जीत गया। फिर भी मारवाड़ से लौटते हुए यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा – “”खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिन्दुस्तान की सल्तनत खो देता।”
सन् 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर पुन: अधिकार कर लिया। पर वह अगले ही वर्ष मर गया। उसके स्थान पर अकबर बादशाह बना। उसने मारवाड़ पर आक्रमण कर अजमेर, जैतारण, मेड़ता आदि इलाके छीन लिए। मालदेव स्वयं 1562 में मर गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् मारवाड़ का सितारा अस्त हो गया। सन् 1587 में मालदेव के पुत्र मौटा राजा उदयसिंह ने अपनी लड़की मानाबाई का विवाह शहजादे सलीम से कर अपने आपको पूर्णरुप से मुगल साम्राज्य को समर्पित कर दिया। आमेर के कछवाहा, बीकानेर के राठौड़, जैसलमेर के भाटी, बूंदी के हाड़ा, सिरोही के देवड़ा और अन्य छोटे राज्य इससे पूर्व ही मुगलों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे।
अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही गहलोत राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे नर-पुंगवों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए।
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिहं ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार 100 वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। मुगल काल में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, और राजस्थान के अन्य राजाओं ने मुगलों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुगल साम्राज्यों के विस्तार और रक्षा में महत्वपूर्ण भाग अदा किया। साम्राज्य की उत्कृष्ट सेवाओं के फलस्वरुप उन्होंने मुगल दरबार में बड़े-बड़े औहदें, जागीरें और सम्मान प्राप्त किये।
राजस्थान की पर्यटन
राजस्थान, एक अविश्वसनीय रूप से सुंदर राज्य भारत के उत्तर पश्चिम में मौजूद है जो अपने आप में कालातीत आश्चर्य का जीवंत उदहारण है, अगर व्यक्ति यात्रा का पारखी है तो उसे यहां जरूर जाना चाहिए। प्राचीन वास्तुकला एक चमत्कार के तौर पर राजस्थान को और भी अधिक रॉयल बनाती है जो राजस्थान रॉयल्स की समृद्धि का एक जीवंत उदाहरण है। राजस्थान का शुमार दुनिया की उन जगहों में है जो अपने यहाँ आने वालों को बहुत कुछ देता है । राजस्थान के पर्यटन स्थलों ने अपनी प्राकृतिक रमणीयता और सुन्दरता से पर्यटकों को आकर्षित किया है। इन पर्यटक स्थलों में कुछ प्रमुख हैं- आबू पर्वत, उदयपुर, एकलिंग जी, नाथद्वारा, ऋषभदेव जी, जयसमन्द, रणकपुर, कांकरोली, कुम्भलगढ़, हल्दीघाटी, अलवर, सीलीगढ़, सिरस्का, नीलकण्ठ, भरतपुर, रणथम्भोर, बूँदी, जयपुर, आमेर, नाहरगढ़, कोटा, बाडौली, जैसलमेर, पुष्कर, अजमेर, चित्तौड़गढ़, जोधपुर, मेवाड़, बीकानेर, महावीर जी, हिण्डौन, किराड़ू नाकोड़ा जैन संप्रदाय का एक प्रमुख तीर्थ है जो बोलतारा से 9 किलोमीटर की दूरी पर मेवानगर में नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर के रुप में अवस्थित है। मंदिर के परिसर में जैन तीथर्ंकर भगवान पार्श्वनाथ के जन्मोत्सव पर एक विशाल मेला आयोजित होता है। इस तीर्थ में तीथर्ंकर पार्श्वनाथ, शांतिनाथ एवं आदिश्वर नाथ की तीन प्रतिमाएँ तीन मंदिरों में प्रतिष्ठापित हैं।
राजस्थान की भाषा
राज्य की मुख्य भाषा राजस्थानी है साथ ही यहां हिन्दी और अंग्रेजी का भी इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर किया जाता है। साथ ही यहां की पुरानी पीढ़ी यानी की बुज़ुर्ग आज भी अपनी बोली में सिन्धी भाषा का इस्तेमाल करते है।
राजस्थान प्रदेश की मुख्य भाषा है। इसकी मुख्य बोलियां हैं मारवाड़ी और मेवाड़ी। राजस्थानी भारत के अतिरिक्त पाकिस्तान में भी भारत से सटे इलाकों में बोली जाती है। जोधपुर और उदयपुर विश्वविद्यालयों में राजस्थानी शिक्षण की व्यवस्था है। इसे वर्तमान में देवनागरी में लिखा जाता है।
राजस्थानी भाषा भारत के राजस्थान प्रान्त व मालवा क्षेत्र तथा पाकिस्तान के कुछ भागों में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। इस भाषा का इतिहास बहुत पुराना है। इस भाषा में प्राचीन साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इस भाषा में विपुल मात्रा में लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी आदि उपलब्ध हैं। इस भाषा को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इस कारन इसे स्कूलों में पढाया नहीं जाता है। इस कारन शिक्षित वर्ग धीरे धीरे इस भाषा का उपयोग छोड़ रहा है, परिणामस्वरूप, यह भाषा धीरे धीरे ह्रास की और अग्रसर है। कुछ मातृभाषा प्रेमी अच्छे व्यक्ति इस भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने के प्रयास में लगे हुए हैं।
राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी और मारवाड़ी (दोनों मिलती जुलती भाषा हैं ) बोली जाती हैं उत्तर भाग में हरयाणवी और राजस्थानी , दक्षिण भाग में मेवाड़ी और गुजराती पूर्व में हिंदी और शेखावाटी भाषा और मध्य में राजस्थानी खड़ी भाषा बोली जाती हैं|
राजस्थान की संस्कृति
राजस्थान को सांस्कृतिक दृष्टि से भारत को समृद्ध प्रदेशों में गिना जाता है। संस्कृति एक विशाल सागर है जिसे सम्पूर्ण रूप से लिखना संभव नहीं है। संस्कृति तो गाँव-गाँव ढांणी-ढांणी चैपाल चबूतरों महल-प्रासादों मे ही नहीं, वह तो घर-घर जन-जन में समाई हुई है। राजस्थान की संस्कृति का स्वरूप रजवाड़ों और सामन्ती व्यवस्था में देखा जा सकता है, फिर भी इसके वास्तविक रूप को बचाए रखने का श्रेय ग्रामीण अंचल को ही जाता है, जहाँ आज भी यह संस्कृति जीवित है। संस्कृति में साहित्य और संगीत के अतिरिक्त कला-कौशल, शिल्प, महल-मंदिर, किले-झोंपडियों का भी अध्ययन किया जाता है, जो हमारी संस्कृति के दर्पण है। हमारी पोशाक, त्यौहार, रहन-सहन, खान-पान, तहजीब-तमीज सभी संस्कृति के अन्तर्गत आते है। थोड़े से शब्दों में कहा जाए तो ‘जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है, वह संस्कृति है।’
राजस्थान के प्रतीकचिन्ह
राज्य वृक्ष – खेजड़ी
“रेगिस्तान का गौरव” अथवा “थार का कल्पवृक्ष” जिसका वैज्ञानिक नाम “प्रोसेसिप-सिनेरेरिया” है। इसको 1983 में राज्य वृक्ष घोषित किया गया। खेजड़ी के वृक्ष सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में देखे जा सकते है तथा नागौर जिले सर्वाधिक है। इस वृक्ष की पुजा विजयाशमी/दशहरे पर की जाती है। खेजड़ी के वृक्ष के निचे गोगाजी व झुंझार बाबा का मंदिर/थान बना होता है। खेजड़ी को पंजाबी व हरियाणावी में जांटी व तमिल भाषा में पेयमेय कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी, सिंधी भाषा में – धोकड़ा व बिश्नोई सम्प्रदाय के लोग ‘शमी’ के नाम से जानते है। स्थानीय भाषा में सीमलो कहते हैं। खेजडी की हरी फली-सांगरी, सुखी फली- खोखा, व पत्तियों से बना चारा लुंग/लुम कहलाता है। खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना(कीड़ा) व ग्लाइकोट्रमा(कवक) नामक दो किड़े नुकसान पहुँचाते है। वैज्ञानिकों ने खेजड़ी के वृक्ष की कुल आयु 5000 वर्ष मानी है। राजस्थान में खेजड़ी के 1000 वर्ष पुराने 2 वृक्ष मिले है।(मांगलियावास गाँव, अजमेर में) पाण्डुओं ने अज्ञातवास के समय अपने अस्त्र-शस्त्र खेजड़ी के वृक्ष पर छिपाये थे।खेजड़ी के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान अमृतादेवी के द्वारा सन 1730 में दिया गया।अमृता देवी द्वारा यह बलिदान भाद्रपद शुक्ल दशमी को जोधुपर के खेजड़ली गाँव 363 लोगों के साथ दिया गया।इस बलिदान के समय जोधपुर का शासक अभयसिंग था।अभयसिंग के आदेश पर गिरधरदास के द्वारा 363 लोगों की हत्या कर दी गई।अम ृता देवी रामो जी बिश्नोई की पत्नि थी। बिश्नोई सम्प्रदाय द्वारा दिया गया यह बलिदान साका/खडाना कहलाता है। 12 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष खेजड़ली दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर 1978 को मनाया गया था। वन्य जीव सरंक्षण के लिए दिया जाने वाला सर्वक्षेष्ठ पुरस्कार अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार है। इस पुरस्कार की शुरूआत 1994 में की गई। इस पुरस्कार के तहत संस्था को 50,000 रूपये व व्यक्ति को 25,000 रूपये दिये जाते है। प्रथम अमृता देवी वन्यजीव पुरस्कार पाली के गंगाराम बिश्नोई को दिया गया। आॅपरेशन खेजड़ा की शुरूआत 1991 में हुई। वैज्ञानिक नाम के जनक वर्गीकरण के जन्मदाता: केरोलस लीनीयस थे।
उन्होने सभी जीवों व वनस्पतियों का दो भागो में विभाजन किया। मनुष्य/मानव का वैज्ञानिक नाम: “होमो-सेपियन्स” रखा होमो सेपियन्स या बुद्धिमान मानव का उदय 30-40 हजार वर्ष पूर्व हुआ।
राजस्थान राज्य पुष्प – रोहिडा का फुल
रोहिडा के फुल को 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। इसे “मरूशोभा” या “रेगिस्थान का सागवान” भी कहते है। इसका वैज्ञानिक नाम- “टिको-मेला अंडुलेटा” है। रोहिड़ा सर्वाधिक राजस्थान के पष्चिमी क्षेत्र में देखा जा सकता है।रोहिडे़ के पुष्प मार्च-अप्रैल के महिने मे खिलते है।इन पुष्पों का रंग गहरा केसरिया-हीरमीच पीला होता है। जोधपुर में रोहिड़े को मारवाड़ टीक के नाम से जाना जाता है।
राजस्थान राज्य पशु – चिंकारा, ऊँट
राजस्थान राज्य पशु –चिंकारा, ऊँट
चिंकारा- चिंकारा को 1981 में राज्य पशु घोषित किया गया।यह “एन्टीलोप” प्रजाती का एक मुख्य जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम गजैला-गजैला है। चिंकारे को छोटा हरिण के उपनाम से भी जाना जाता है।चिकारों के लिए नाहरगढ़ अभ्यारण्य जयपुर प्रसिद्ध है।राजस्थान का राज्य पशु ‘चिंकारा’ सर्वाधिक ‘मरू भाग’ में पाया जाता है। “चिकारा” नाम से राजस्थान में एक तत् वाद्य यंत्र भी है। ऊँट- राजस्थान का राज्यपशु(2014 में घोषित) ऊँट डोमेस्टिक एनिमल के रूप में संरक्षित श्रेणी में और चिंकारा नाॅन डोमेस्टिक एनिमल के रूप में संरक्षित श्रेणी में रखा जाएगा।
राजस्थान राज्य पक्षी – गोेडावण
1981 में इसे राज्य पक्षी के तौर पर घोषित किया गया। इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भी कहा जाता है। यह शर्मिला पक्षी है और इसे पाल-मोरडी व सौन-चिडिया भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम “क्रोरियोंटिस-नाइग्रीसेप्स” है। गोडावण को सारंग, कुकना, तुकदर, बडा तिलोर के नाम से भी जाना जाता है। गोडावण को हाडौती क्षेत्र(सोरसेन) में माल गोरड़ी के नाम से जाना जाता है। गोडावण पक्षी राजस्थान में 3 जिलों में सर्वाधिक देखा जा सकता है।
मरूउधान- जैसलमेर, बाड़मेरसोरसन- बांरासोकंलिया- अजमेर
गोडावण के प्रजनन के लिए जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है। गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है।यह मुलतः अफ्रीका का पक्षी है।इसका ऊपरी भाग का रंग नीला होता है व इसकी ऊँचाई 4 फुट होती है।इनका प्रिय भोजन मूगंफली व तारामीरा है।गोडावण को राजस्थान के अलावा गुजरात में भी सर्वाधिक देखा जा सकता
केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश
राजस्थान राज्य गीत-“केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश।”
इस गीत को सर्वप्रथम उदयपुर की मांगी बाई के द्वारा गया।इस गीत को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई के द्वारा गाया गया। अल्ला जिल्ला बाई को राज्य की मरूकोकिला कहते है। इस गीत को मांड गायिकी में गाया जाता है।
केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश
राजस्थान का राज्यनृत्य – घुमर
धूमर (केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य) इस राज्य नृत्यों का सिरमौर (मुकुट) राजस्थानी नृत्यों की आत्मा कहा जाता है।
राज्य शास्त्रीय नृत्य –कत्थक
कत्थक उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है। इनका मुख्य घराना भारत में लखनऊ है तथा राजस्थान में जयपुर है। कत्थक के जन्मदाता भानू जी महाराज को माना जाता है। अगर आप
राजस्थान का राज्यखेल – बास्केटबाॅल
बास्केटबाॅंल को राज्य खेल का दर्जा 1948 में दिया गया।
राजस्थान की जलवायु
राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है।
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक – अक्षांशीय स्थिती, समुद्रतल से दुरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि।
राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं
राजस्थान की जलवायुकि प्रमुख विशेषताएं –
शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानताअपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षावर्षा का अनायस वितरणअधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
राजस्थान की जलवायु
राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है। जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक – अक्षांशीय स्थिती, समुद्रतल से दुरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि।
राजस्थान की जलवायुकि प्रमुख विशेषताएं –
शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानताअपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षावर्षा का अनायस वितरण अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
शुष्क प्रदेश
क्षेत्र – जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग। औसत वर्षा – 0-20 सेमी.।
अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश
क्षेत्र – चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर व झुझुनू का पश्चिमी भाग। औसत वर्षा – 20-40 सेमी.।
उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश
क्षेत्र – अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा टोंक, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग। औसत वर्षा – 40-60 सेमी.।
आर्द्र जलवायु प्रदेश
क्षेत्र – भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़। औसत वर्षा – 60-80 सेमी.।
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
क्षेत्र – द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र। औसत वर्षा – 60-80 सेमी.।
राजस्थान में पर्यटनविकास
राजस्थान में सर्वाधिक पर्यटक(देशी व विदेशी दोनों) – 1. पुष्कर – अजमेर माउण्ट आबू – सिरोही।राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक – जयपुर शहर में आते हैं।राजस्थान में सर्वाधिक विदेशी पर्यटक – 1. फ्रांस ब्रिटेन से आते हैं।
पर्यटन की दृष्टि सेराजस्थान को 9सर्किट 1 परिपथ मेंबांटा है।
मोहम्मद यूनूस समिति की सिफारिश पर 4 मार्च 1889 को पर्यटन को उद्योग का दर्जा प्राप्त करने वाला राजस्थान भारत का प्रथम राज्य था।
राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTDC): स्थापना – 1978 में मुख्यालय – जयपुर
राजस्थान पर्यटन त्रिकोण: स्वर्णिम त्रिकोण – दिल्ली – आगरा – जयपुर
राजस्थान मरू त्रिकोण – जैसलमेर – बीकानेर – जोधपुर
राजस्थान पर्यटन सर्किट/परिपथ:
मरू सर्किट – जैसलमेर – बीकानेर – जोधपुर – बाड़मेर
शेखावाटी सर्किट – सीकर – झुंझुनू
ढुढाॅड सर्किट – जयपुर – दौसा – आमेर
ब्रज मेवात सर्किट – अलवर – भरतपुर – सवाईमाधोपुर – टोंक
हाड़ौती सर्किट – कोटा – बुंदी – बारा – झालावाड़
मेरवाड़ा सर्किट – अजमेर – पुष्कर – मेड़ता – नागौर
मेवाड़ सर्किट – राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा
वागड़ सर्किट – बांसवाड़ा – डुंगरपुर
गौड़वाड़ सर्किट – पाली – सिरोही – जालौर
राजस्थान के प्रमुख महोत्सव: अगर आप रॉयल
राजस्थान के प्रमुखमहोत्सव
क्र. स. महोत्सव स्थान तिथि
अन्तराष्ट्रीय मरू महोत्सव जैसलमेर जनवरी – फरवरीअन्तर्राष्ट्रीय थार महोत्सव बाड़मेर फरवरी – मार्चतीज महोत्सव(छोटी तीज) जयपुर श्रावण शुक्ल तृतीयाकजली/बड़ी/सातूडी तीज बूंदी भाद्र कृष्ण तृतीयागणगौर महोत्सव जयपुर चैत्र शुक्ल तृतीयाकार्तिक महोत्सव पुष्कर, अजमेर कार्तिक पूर्णिमावेणेश्वर महोत्सव डुंगरपुर माघ पूर्णिमाऊंट महोत्सव बीकानेर जनवरीहाथि महोत्सव जयपुर मार्चपतंग महोत्सव जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर जनवरीबैलून महोत्सव बाड़मेर वर्ष में चार बारमेवाड़ महोत्सव उदयपुर अप्रैलमारवाड़ जोधपुर अक्टुबरशरद कालीन महोत्सव माउण्ट आबू नवम्बरग्रीष्म कालीन महोत्सव माउण्ट आबू मईशेखावटी महोत्सव चुरू – सीकर – झुंझुनू फरवरीब्रज महोत्सव भरतपुर फरवरी
Comments
Post a Comment